PESA NCOG क्या है? | पेसा ग्रामों की डिजिटल निगरानी और जियो-इंफॉर्मेटिक्स की नई दिशा
PESA NCOG क्या है? | पेसा ग्रामों की डिजिटल निगरानी और जियो-इंफॉर्मेटिक्स की नई दिशा
परिचय:
भारत के आदिवासी क्षेत्रों में शासन को लोकतांत्रिक और स्थानीय बनाने के लिए पेसा कानून 1996 (PESA Act) एक ऐतिहासिक कदम था।
लेकिन जबतक इसकी निगरानी और क्रियान्वयन पारदर्शी नहीं होगा, तब तक इसका वास्तविक लाभ समुदायों को नहीं मिलेगा।
इसी उद्देश्य से अब भारत सरकार का एक तकनीकी संगठन — NCOG (National Centre for Geo-informatics) पेसा ग्रामों के लिए जिओ-टैगिंग और डिजिटल निगरानी का काम कर रहा है।
🔷 PESA कानून क्या है? (संक्षेप में)
PESA (Panchayats Extension to Scheduled Areas) Act, 1996 भारत के उन जनजातीय क्षेत्रों पर लागू होता है जो अनुसूचित क्षेत्र घोषित हैं।
इस कानून का उद्देश्य है कि गाँवों की ग्रामसभा को निर्णय लेने का अधिकार मिले — जैसे:
जल, जंगल, ज़मीन पर स्वशासन
खनिज, वन उपज और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण
परंपरागत विधियों से ग्राम न्याय
🔷 NCOG क्या है?
NCOG (National Centre for Geo-Informatics) भारत सरकार का एक डिजिटल प्रकोष्ठ है, जो GIS (Geographic Information System) और Geo-Spatial Technologies के ज़रिए अलग-अलग सरकारी योजनाओं की डिजिटल निगरानी (Monitoring) करता है।
यह NIC (National Informatics Centre) के तहत कार्य करता है।
> 👉 NCOG का कार्य है: डेटा को नक्शे के माध्यम से प्रस्तुत करना, स्थान आधारित निगरानी, ग्रामस्तरीय योजनाओं की ट्रैकिंग
🔷 PESA और NCOG कैसे जुड़े हैं?
अब बात करते हैं PESA NCOG के कनेक्शन की।
पिछले कुछ वर्षों में भारत सरकार ने राज्यों को निर्देश दिया है कि वे:
1. PESA ग्रामों की सूची तैयार करें
2. ग्रामसभा की बैठकों, वनाधिकार कार्यवाही और योजनाओं को जिओ-टैग करें
3. इन सबको NCOG पोर्टल या GIS प्लेटफ़ॉर्म पर अपलोड करें
> 👉 इससे ग्रामसभाओं की पारदर्शिता और सरकारी योजनाओं की निगरानी आसान हो जाती है।
🛰️ PESA ग्रामों की डिजिटल मैपिंग कैसे होती है?
NCOG, पंचायत विभाग और जनजातीय कार्य मंत्रालय मिलकर डिजिटल मैपिंग और जिओ-टैगिंग की प्रक्रिया चलाते हैं:
प्रक्रिया विवरण
📍 Geo-tagging
ग्रामसभा भवन, सामुदायिक संसाधन केंद्र, वन अधिकार भूमि आदि का स्थान चिह्नित किया जाता है
🗓️ Meeting Tracker
ग्रामसभा की बैठकों की जानकारी (तारीख, निर्णय) पोर्टल पर दर्ज की जाती है
📸 फोटो और कोऑर्डिनेटस
योजनाओं की फोटोज और GPS लोकेशन दर्ज होती है
📊 Dashboard
विभागीय स्तर पर हर ग्राम की निगरानी के लिए डैशबोर्ड तैयार होता है
🔎 इसका लाभ क्या है?
लाभ विवरण
✅ पारदर्शिता👉
कोई भी योजना कहां पहुंची, उसकी निगरानी संभव
✅ ग्रामसभा सशक्त उनके निर्णयों को डिजिटल मान्यता मिलती है
✅ सरकारी योजनाएं ट्रैक फंड कहां उपयोग हो रहा है, यह देखा जा सकता है
✅ वन अधिकार दावा प्रक्रिया तेज दावों की स्थिति ऑनलाइन देखी जा सकती है
🧠 क्या आम जनता को इसका एक्सेस मिलता है?
अभी ज़्यादातर NCOG आधारित पोर्टल केवल विभागीय उपयोग के लिए होते हैं, लेकिन कुछ राज्यों में सीमित जनपारदर्शिता भी दी गई है।
भविष्य में इसे जनसुलभ करने की योजना है।
उदाहरण:
छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों में वन अधिकार पोर्टल
मध्यप्रदेश में पेसा पोर्टल का निर्माण प्रारंभ
🛠️ क्या राज्यों को NCOG प्लेटफ़ॉर्म अनिवार्य है?
जी हाँ, केंद्र सरकार ने निर्देश दिया है कि जिन राज्यों में पेसा लागू है — वहाँ:
1. Digital Monitoring जरूरी है
2. NCOG या अन्य Geo-Portal के माध्यम से रिपोर्टिंग हो
3. पेसा मोबिलाइज़र्स, ग्राम सचिव और अधिकारी नियमित अपडेट करें
निष्कर्ष:
PESA NCOG एक डिजिटल क्रांति है, जो पारंपरिक अधिकारों को तकनीक के साथ जोड़ती है।
इसका उद्देश्य है — ग्रामसभा की आत्मनिर्भरता को टेक्नोलॉजी से मज़बूत करना।
👇आज ज़रूरत है कि इस तकनीकी पहल को जनपहल बनाकर हर आदिवासी क्षेत्र में लागू किया जाए।
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