PESA मोबेलाइज़र का संघर्ष: अधिकार दिलाने वाले आज खुद न्याय के मोहताज क्यों?
PESA मोबेलाइज़र का संघर्ष: अधिकार दिलाने वाले आज खुद न्याय के मोहताज क्यों?
दिनांक: [31 मई 2025]
भूमिका:
जब भी हम जनजातीय अधिकारों की बात करते हैं, तो सबसे पहले PESA कानून (पंचायतों का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार अधिनियम) की चर्चा होती है।
यह कानून आदिवासियों को उनके संसाधनों — जल, जंगल और जमीन — पर निर्णय लेने का अधिकार देता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस कानून को गांव-गांव तक पहुँचाने वाले PESA मोबेलाइज़र किस हालात में काम कर रहे हैं?
1️⃣ न्याय की राह पर पहला झटका: कोर्ट में ESTAY
साल 2021-22 में मध्यप्रदेश राज्यों में हजारों युवाओं की PESA मोबेलाइज़र के रूप में नियुक्ति हुई।
इन युवाओं का लक्ष्य था – ग्रामसभाओं को सशक्त बनाना, आदिवासियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना।
लेकिन कुछ ही समय बाद, नियुक्ति प्रक्रिया पर कोर्ट से स्थगन (Stay) आदेश लग गया।
👇
📌 नतीजा:
हजारों युवाओं का रोजगार अधर में लटक गया।
2️⃣ कार्यभार ज़्यादा, वेतन शून्य के बराबर
👍जब कोर्ट से रास्ता साफ हुआ, तब फिर से काम शुरू हुआ।
PESA मोबेलाइज़र ने पूरे जोश के साथ गांवों में जाकर:🙏
ग्रामसभा की बैठकों को सशक्त किया
लघु वनोपज, FRA 2006, और पंचायती अधिकारों पर लोगों को शिक्षित किया
ग्रामीण आदिवासियों के लिए वन भूमि, रोजगार, और योजनाओं की जानकारी पहुंचाई
लेकिन हैरानी की बात यह रही कि सरकार ने वेतन भुगतान की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की।
📌 घोषणाएं तो हुईं,
लेकिन ज़मीन पर ना नियमितीकरण हुआ, ना ही संतोषजनक वेतन मिला।
3️⃣ पंचायत से प्रशासन तक: काम तो लिया, लेकिन मान्यता नहीं दी👇
PESA मोबेलाइज़र से पंचायतों ने कई बार ऐसे काम करवाए, जो उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आते:
ग्राम सचिवों का सहायक कार्य
पंचायत के दस्तावेज़ भरना
चुनावी प्रक्रिया में सहयोग
सर्वे, जनगणना, और योजना संचालन
👉 लेकिन इन सब कार्यों का ना तो पर्याप्त वेतन मिला, ना ही कोई मान्यता।
4️⃣ व्यक्तिगत स्तर पर गहराता संकट
हर PESA मोबेलाइज़र के पीछे एक संघर्ष की कहानी है:
कोई अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला है
कोई खुद आदिवासी समाज से है, जो अपने लोगों के लिए कुछ करना चाहता था
किसी ने घर गिरवी रखकर पढ़ाई की थी, अब बिना वेतन के काम कर रहा है
क्या यह न्याय है कि जो व्यक्ति ग्रामसभा को अधिकार सिखा रहा है, उसका खुद का भविष्य अनिश्चित हो?
5️⃣ क्या कहती है सरकार?
राज्य सरकारों द्वारा कई बार यह कहा गया कि:
मोबेलाइज़र को प्रशिक्षण मिला है
पंचायत विभाग उन्हें मार्गदर्शन दे रहा है
जल्द ही "फेलोशिप" या "मानदेय" जारी होगा
लेकिन हकीकत में यह सिर्फ कागज़ी घोषणाएं साबित हुईं।
6️⃣ सरकार की ₹8000 फेलोशिप की घोषणा – सिर्फ वादा?
अक्टूबर 2023 में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा घोषणा की गई कि:
"हर PESA मोबेलाइज़र को ₹8000 मासिक मानदेय दी जाएगी।"
यह खबर पेसा मोबेलाइज़र के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई।
लेकिन अब मई 2025 चल रहा है —
📌 ना आदेश आया, ना भुगतान शुरू हुआ।
📌 कोई स्पष्ट गाइडलाइन भी सामने नहीं आई।
👉 क्या यह घोषणा सिर्फ चुनावी वादा थी? या कुछ और.....
👉 या फिर वास्तव में सरकार को आदिवासी सशक्तिकरण की परवाह नहीं?
निष्कर्ष:
👉 सरकार ने PESA कानून लागू कर आदिवासी स्वराज का सपना दिखाया,
लेकिन इस कानून की नींव मजबूत करने वालों को ही अनदेखा कर दिया गया।
👉 आज ज़रूरत है:
मोबेलाइज़र की सेवा को मान्यता देने की
उन्हें नियमित रोजगार का दर्जा देने की
और उनके लंबित और बड़ा वेतन को तुरंत जारी करने की
✊ एक आवाज़ बने, एक आंदोलन बने
अगर आप भी मानते हैं कि PESA मोबेलाइज़र के साथ अन्याय हो रहा है,
तो इस पोस्ट को ज़्यादा से ज़्यादा शेयर करें।
आपकी एक आवाज़, किसी मोबेलाइज़र के हक़ और हौंसले को मज़बूती दे सकती है।
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🎥 पेसा मोबेलाइज़र का संघर्ष – ज़रूर देखें!
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हम बहुत जल्द ही पेसा मोबेलाइज़र संघर्ष, उनका मेहनत, और उपलब्धि पर दूसरा भाग ले कर आ रहें हैं
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