जैव विविधता अधिनियम 2002 और पेसा नियम: ग्रामसभा और आदिवासी समाज की ताक़त

जैविक विविधता






 जैव विविधता अधिनियम 2002 और पेसा नियम: ग्रामसभा और आदिवासी समाज की ताक़त


                     परिचय👇


भारत विश्व के उन देशों में से एक है जहां जैव विविधता सबसे अधिक पाई जाती है। यहां के जंगल, पहाड़, नदी और पारंपरिक समाज इस प्रकृति से जुड़े हुए हैं। खासकर आदिवासी समुदाय ने सदियों से अपनी सांस्कृतिक परंपराओं और ज्ञान से इन प्राकृतिक संसाधनों को बचाकर रखा है। बदलते समय में जब जैव विविधता पर शोषण बढ़ा, तो इसे सुरक्षित रखने के लिए भारत सरकार ने जैव विविधता अधिनियम 2002 लागू किया। इसी तरह, आदिवासी इलाकों में स्वशासन को मजबूत करने के लिए पेसा अधिनियम 1996 बनाया गया, जिसे राज्यों ने अपने-अपने नियमों के जरिए लागू किया।



जैव विविधता अधिनियम 2002 क्या है?


जैव विविधता अधिनियम 2002 का उद्देश्य है:


देश की विविध जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और परंपरागत ज्ञान को संरक्षित रखना,


इन संसाधनों का टिकाऊ उपयोग सुनिश्चित करना,


स्थानीय समुदायों को इन संसाधनों से लाभांश दिलाना।


🇮🇳इसके लिए तीन स्तरों पर संस्थाएं बनाई गई हैं:🇮🇳

 1️⃣ राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) — पूरे देश में नीति और अनुमति से जुड़े काम देखता है।

2️⃣ राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB) — राज्य स्तर पर काम करता है।

3️⃣ जैव विविधता प्रबंधन समिति (BMC) — हर गाँव और नगर पंचायत में बनाई जाती है।


BMC का सबसे महत्वपूर्ण काम है पीपुल्स बायोडाइवर्सिटी रजिस्टर (PBR) तैयार करना। इसमें गाँव की हर प्रजाति, पेड़-पौधे, जड़ी-बूटी, जल स्त्रोत और उनसे जुड़ा परंपरागत ज्ञान दर्ज किया जाता है। इससे बाहर से आने वाली कंपनियां गाँव की संपदा का गलत फायदा नहीं उठा सकतीं।



🏡 पेसा अधिनियम और इसके नियम


पेसा अधिनियम 1996 यानी पंचायती राज (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, आदिवासी बहुल इलाकों को स्वशासन देने के लिए बनाया गया था। इसका मतलब है कि ग्रामसभा सर्वोच्च संस्था होगी और वह अपने क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन स्वयं करेगी।


राज्यों ने इस अधिनियम को लागू करने के लिए अपने-अपने नियम बनाए। उदाहरण के लिए मध्यप्रदेश पेसा नियम 2022, जिसमें ग्रामसभा को विशेष अधिकार दिए गए हैं जैसे:

Q ✅ लघु वनोपज का संग्रहण, प्रसंस्करण और विक्रय का अधिकार।

✅ खनिज संपदा की देखरेख और खनन परियोजनाओं पर सहमति या असहमति।

✅ जल स्रोतों, वन और जैविक संसाधनों का संरक्षण।

✅ परंपरागत ज्ञान और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा।



🔗 जैव विविधता अधिनियम और पेसा नियम का आपसी संबंध


जैव विविधता अधिनियम और पेसा अधिनियम दोनों ही स्थानीय समुदायों को शक्तिशाली बनाने पर जोर देते हैं।

जहां जैव विविधता अधिनियम BMC के माध्यम से गाँव में जैव विविधता के प्रबंधन को व्यवस्थित करता है, वहीं पेसा नियम ग्रामसभा को कानूनी अधिकार देते हैं कि कोई भी बाहरी एजेंसी गाँव के संसाधनों का इस्तेमाल ग्रामसभा की सहमति के बिना नहीं कर सकती।


 ग्रामसभा और BMC का तालमेल:


ग्रामसभा यह तय करती है कि कोई बाहरी कंपनी रिसर्च या दोहन करेगी या नहीं।


BMC उस निर्णय को कानूनी दस्तावेज के रूप में दर्ज करती है।


इससे गाँव का ज्ञान सुरक्षित रहता है और लाभ साझा करने की शर्तें तय होती हैं।


          ग्रामसभा की भूमिका


ग्रामसभा ही पेसा की आत्मा है। यह गाँव की संसद है, जिसमें गाँव के सभी वयस्क लोग सदस्य होते हैं। जैव विविधता से जुड़े मामलों में ग्रामसभा:


PBR को स्वीकृति देती है,


BMC के कामों की निगरानी करती है,


किसी भी रिसर्च या बायो-पैटेंट से जुड़े समझौते की अनुमति देती है।



 स्थानीय समुदायों को होने वाले लाभ


जैव विविधता अधिनियम और पेसा नियम दोनों से स्थानीय समुदायों को यह फायदे होते हैं:

 ✅ बाहरी कंपनियां जब जैव संसाधनों पर रिसर्च करती हैं तो गाँव को लाभांश मिलता है।

✅ परंपरागत ज्ञान को चोरी नहीं किया जा सकता।

✅ गाँव की आय बढ़ती है और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।

✅ लोगों में जागरूकता बढ़ती है और पर्यावरण संरक्षण मजबूत होता है।


                 चुनौतियां👇


हालांकि कानून मजबूत हैं, पर जमीनी स्तर पर कई चुनौतियां हैं:


ग्रामसभा और BMC के सदस्यों को पूरी जानकारी नहीं होती।


कंपनियां कई बार धोखा देकर संसाधनों का शोषण कर लेती हैं।


लाभ साझा करने की प्रक्रिया जटिल होती है।



इन्हें सुधारने के लिए जरूरी है कि समुदायों को प्रशिक्षण दिया जाए और स्थानीय नेतृत्व को मजबूत किया जाए।

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                           निष्कर्ष


जैव विविधता अधिनियम 2002 और पेसा नियम आदिवासी समाज और ग्रामसभा को अधिकार देने वाले ऐतिहासिक कदम हैं। इनकी सही क्रियान्वयन से गाँवों की पारंपरिक विरासत सुरक्षित रहेगी और आने वाली पीढ़ियां भी प्रकृति से जुड़े रहेंगी


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