"पेसा कानून 1996 में बना|मध्य प्रदेश पंचायत उपबंध(अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार )नियम 2022(पेसा ) भूरिया समिति की सिफारिशें इस ब्लॉग में जानिए आदिवासी स्वराज, ग्रामसभा की ताकत और सरकार की कोसिस पूरी सच्चाई।"यह लेख जनजातीय गौरव गाथा की उस कड़ी को उजागर करता है, जिसमें आदिवासी समाज ने अपने अधिकारों के लिए लंबा संघर्ष किया।" जनजाति योद्धा की कहानी, भारत दर्शन एक ही मंच मे, bharat darshan#pesaact, #tribalrights, #gramsabha#pesaniyam2022.
जनजातीय समाज का गौरवशाली अतीत,tribal pride of india
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आदिवासी समाज का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक गौरव
भारत की विविधता भरी संस्कृति में जनजातीय समाज का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। जहाँ आधुनिकता की दौड़ में कई सांस्कृतिक पहचान खो गईं, वहीं जनजातीय समाज ने भारतीयता के मूल तत्वों को जीवित रखा। इस ब्लॉग पोस्ट में हम जनजातीय समाज की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक भूमिका पर प्रकाश डालेंगे।
1. भारतीय संस्कृति में जनजातीय समाज की भूमिका
भारत की संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी और जीवित संस्कृतियों में से एक है। इसकी विशेषता इसकी विविधता में एकता है। इसमें आदिवासी समाज की भी गहरी भूमिका रही है। जनजातीय समाज ने भारतीय संस्कृति के मूल मूल्यों को अपने जीवन में आत्मसात किया। उनका जीवन प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहा है, जो भारतीय संस्कृति की आत्मा है। आध्यात्मिकता, सरलता और सामूहिक जीवन शैली उनके जीवन के आधार रहे हैं।
2. सांस्कृतिक आक्रमणों में जनजातीय समाज का प्रतिरोध
इतिहास गवाह है कि जब-जब भारत पर विदेशी आक्रमण हुए, जनजातीय समाज ने सबसे पहले उनका प्रतिरोध किया। सिकंदर के भारत आगमन के समय आदिवासी क्षेत्रों में उसे कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुग़ल और इस्लामी आक्रमणों के समय भी आदिवासी समाज ने अपने क्षेत्रों की रक्षा की। वे सिर्फ प्रतिरोधकर्ता नहीं, बल्कि संस्कृति के रक्षक भी थे।
3. औपनिवेशिक काल में जनजातीय समाज की छवि को बिगाड़ने का षड्यंत्र
अंग्रेजों के शासनकाल में जनजातीय समाज ने उन्हें सबसे अधिक चुनौती दी।
अंग्रेजों को सबसे ज़्यादा प्रतिरोध जनजातीय क्षेत्रों से मिला।
परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने उनकी छवि को “जंगली”, “पिछड़ा” और “असभ्य” बताकर बदनाम किया।
इसका उद्देश्य था उनके आत्मविश्वास और स्वतंत्रता की भावना को कुचलना।
4. जनजातीय समाज की विशेषताएँ और आत्मनिर्भरता
"जनजातीय समाज सदियों से आत्मनिर्भर रहा है, जिसे समझना आज के समय में अत्यंत आवश्यक है।
उनकी सामाजिक व्यवस्था, परंपराएं और न्याय प्रणाली अत्यंत व्यवस्थित रही हैं।
वे बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं रहते थे; समस्याओं का समाधान अपने भीतर खोजते थे।
आज के “सस्टेनेबल डेवेलपमेंट” की अवधारणा उनके जीवन का हिस्सा रही है।"
5. आधुनिक समाज को क्या सीखना चाहिए?
आज जब विकास की दौड़ में पारंपरिक मूल्य पीछे छूट रहे हैं, तब जनजातीय समाज से सीखना आवश्यक है।
सामूहिकता, प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व, और आध्यात्मिक संतुलन उनके जीवन के केंद्र हैं।
उनकी परंपराएं और जीवनदर्शन आज की पीढ़ी को संतुलन सिखा सकते हैं।
भारत को आत्मनिर्भर और टिकाऊ समाज की दिशा में आगे बढ़ने के लिए उनकी समझ आवश्यक है।
कुछ जीवंत उदाहरण👇
आज जो सरकार की बहुत ही महत्व पूर्ण प्रयासों में से एक "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" "दहेज़ प्रथा" जैसी सामाजिक बुराइयाँ हमारे आदिवासी समाज में ना के बराबर है हम सभी को यहाँ से सीख लेने की जरूरत है|
निष्कर्ष
🙏 पुनः सम्मान और पहचान की आवश्यकता🙏
आज समय की माँग है कि जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास, संस्कृति और योगदान को पुनः पहचाना जाए और उन्हें समाज में वह सम्मान मिले जिसके वे अधिकारी हैं।
यह पोस्ट केवल जानकारी नहीं, बल्कि एक प्रयास है जनजातीय समाज को मुख्यधारा में लाने का।
हमें उनके ज्ञान, संस्कृति और परंपराओं से सीखकर एक समावेशी भारत का निर्माण करना चाहिए।
👉आइए, हम सब मिलकर इस अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर को समझें, सम्मान दें और संरक्षित करने में अपनी भूमिका निभाएं।
आप क्या सोचते हैं जनजातीय समाज के इस गौरवपूर्ण योगदान के बारे में?
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हमारा यह लेख विषय प्रवेश करने का था हम आगे सभी छोटे से छोटे पहलु पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे
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