पेसा कानून की केंद्रिय पहल और कानून के पीछे के हाथ | आदिवासी स्वराज का सफर


पेसा का केंद्रीय कानून बनने की प्रक्रिया और पीछे के हाथ

स्व 0श्री दिलीप सिंह भूरिया जी
पेसा कानून का केंद्रीय कानून बनने की प्रक्रिया – प्रारूप और अध्यक्षता भारत के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों के स्वशासन को सशक्त करने वाला एक ऐतिहासिक कानून है – 

पेसा (PESA) अधिनियम। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस कानून का केंद्रीय स्तर पर निर्माण कैसे हुआ, इसका प्रारूप किसने तैयार किया और इसकी अध्यक्षता किसने की? आज हम जानेंगे पेसा अधिनियम की पृष्ठभूमि, निर्माण प्रक्रिया और उसके प्रारूपण में जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तित्वों के बारे में। -

 🇮🇳पेसा कानून की पृष्ठभूमि 1992 में भारत के संविधान में 73वां संशोधन करके पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिया गया। लेकिन जनजातीय क्षेत्रों की विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए, वहाँ सामान्य पंचायत व्यवस्था को लागू करना उचित नहीं था। इसलिए, संविधान के अनुच्छेद 243M(4)(b) के तहत, अनुसूचित क्षेत्रों के लिए एक विशेष कानून बनाने की जरूरत महसूस की गई। -🇮🇳

पेसा कानून का निर्माण: 1996 भारत सरकार ने 1996 में "अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायतों के लिए प्रावधान संबंधी कानून" बनाया, जिसे हम संक्षेप में PESA Act, 1996 कहते हैं। यह कानून संसद द्वारा पारित किया गया और 24 दिसंबर 1996 को इसे राष्ट्रपति की मंज़ूरी मिली। -

 🌹प्रारूप समिति और अध्यक्षता पेसा कानून के प्रारूपण की जिम्मेदारी एक उच्चस्तरीय समिति को दी गई थी, जिसकी अध्यक्षता कर रहे थे: 
 श्री दिलीप सिंह भूरिया (Shri Dileep Singh Bhuria ji  🌹

ये मध्यप्रदेश के झाबुआ क्षेत्र से सांसद थे और एक वरिष्ठ आदिवासी नेता के रूप में प्रसिद्ध थे। भारत सरकार ने "भूरिया समिति" (Bhuria Committee) का गठन किया था, जिसका उद्देश्य था – अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत व्यवस्था के अनुकूल सुझाव देना। इस समिति ने 1995 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिस पर आधारित होकर PESA कानून का प्रारूप तैयार हुआ। 


भूरिया समिति की मुख्य सिफारिशें ग्राम सभा को सर्वोच्च निर्णय लेने वाली इकाई माना जाए। ग्राम सभा को प्राकृतिक संसाधनों, जैसे – जमीन, जल, जंगल पर अधिकार मिले। खनन, शराब निर्माण, बाजार व्यवस्था, सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर ग्राम सभा की सहमति जरूरी हो। इन सुझावों को ध्यान में रखकर ही पेसा अधिनियम 1996 बना, जो अनुसूचित क्षेत्रों की स्वायत्तता को मजबूत करता है
 

              🙏  🇮🇳   निष्कर्ष 🇮🇳🙏

पेसा कानून केवल एक अधिनियम नहीं, बल्कि भारत के आदिवासी समाज को स्वशासन का अधिकार देने वाली क्रांतिकारी पहल है। श्री दिलीप सिंह भूरिया और उनकी समिति का योगदान इस दिशा में ऐतिहासिक रहा है। हमें इस कानून की जानकारी केवल पढ़ने तक सीमित नहीं रखनी चाहिए, बल्कि इसे गाँव-गाँव तक पहुँचाकर जनजागरूकता फैलानी चाहिए।  

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लगातार बने रहें अब आगे पेसा का प्रारूप, पंचायती राज मे पेसा सबैधानिक स्वरुप और उसके अंतर्गत आने वाले जंगल विभाग माइनिंग रेवेन्यू तीन कानून पेसा ग्राम सभा अलग करने की प्रक्रिया और भी गंभीर विषय मे लगातार प्रकाश डालते रहेंगे |आगे हैं पेसा एक्ट, जनजातीय गौरव गाथा, भारत के वीर सपूतो की सच्ची कहानी

                     🙏🙏धन्यवाद🙏🙏
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मैं प्रकाश द्विवेदी M. A. इंग्लिश/संस्कृत (BJMC)न्यूज़

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