अनुसूचित क्षेत्रों में लघु वन उपज और मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022
अनुसूचित क्षेत्रों में लघु वन उपज और मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022
परिचय
भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी जनजातियों की आजीविका और जीवन शैली का बड़ा हिस्सा वन संसाधनों पर निर्भर करता है। इन इलाकों में मिलने वाली लघु वन उपज (Minor Forest Produce - MFP) आदिवासियों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं।
मध्य प्रदेश में भी ऐसे कई इलाके हैं जहां आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए वन उपज पर निर्भर हैं। इन संसाधनों के संरक्षण, प्रबंधन और उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई कानून बनाए हैं, जिनमें मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022 एक महत्वपूर्ण नियम है।
लघु वन उपज (MFP) क्या है?👇
लघु वन उपज से तात्पर्य वन से प्राप्त होने वाली उन वस्तुओं से है जो प्रमुख लकड़ी या भारी वन उत्पादों के अलावा होती हैं। ये उपजें आदिवासियों के लिए घरेलू उपयोग, व्यापार और जीविकोपार्जन के प्रमुख साधन होती हैं।
पेसा नियम 2022 में शामिल 16 प्रकार की प्रमुख लघु वनोपज:
1. तेंदूपत्ता
2. गोंद
3. शहद
4. महुआ फूल
5. हर्रा
6. बहेड़ा
7. आंवला
8. चिरौंजी
9. चार बीज (चारोली)
10. कुसुम बीज
11. भोपाली फूल (धवा फूल)
12. सलैया बीज
13. लाल बीज (रत्ती बीज)
14. बेल
15. भिलमा (बिजौरा)
16. कचनार फूल
इन उपजों का संग्रह, उपयोग और विक्रय का अधिकार अब ग्रामसभा को दिया गया है, जिससे आदिवासी समुदाय स्वयं अपने संसाधनों का निर्णय ले सकता है।
मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022 और ग्रामसभा का अधिकार
पेसा (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act) का उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को स्वशासन और अधिकार देना है ताकि वे अपने संसाधनों का संरक्षण और प्रबंधन खुद कर सकें।
नियम के मुख्य बिंदु:
ग्रामसभा को वन उपज का प्रबंधन अधिकार: ग्रामसभा यह तय कर सकती है कि वन उपज का संरक्षण और उपयोग किस प्रकार होगा।
लघु वन उपज का स्वामित्व ग्रामसभा के पास: इससे आदिवासी समुदाय को अपनी आजीविका सुरक्षित रखने में मदद मिलती है।
विपणन और मूल्य निर्धारण में भागीदारी: ग्रामसभा या स्थानीय समितियां सीधे वन उपज की बिक्री और मूल्य निर्धारण कर सकती हैं।
संरक्षण के उपाय: वन उपज के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिए ग्रामसभा द्वारा नियम बनाए जा सकते हैं।
स्थानीय वन समिति का गठन: ग्रामसभा के सदस्यों से मिलकर वन उपज के प्रबंधन के लिए समिति बनाई जाती है।
गाओं वनोपज के फायदे
आजीविका का सशक्त स्रोत: आदिवासी समुदाय अपनी आजीविका मजबूत कर पाते हैं।
वन संसाधनों का संरक्षण: सामूहिक प्रबंधन से वन संसाधनों की रक्षा होती है|
पारदर्शिता और सहभागिता: ग्रामसभा में निर्णय लेने से प्रक्रिया पारदर्शी होती है।
सामाजिक और आर्थिक न्याय: सीधे उचित मूल्य मिलने से मध्यमवर्गीय आदिवासी मजबूत होते हैं।
गाओं वनोपज की चुनौतियां
अवैध कटाई और तस्करी: वन उपज की अवैध निकासी समस्या बनी हुई है।
सही आंकड़ों का अभाव: उपज के उत्पादन और उपलब्धता का सटीक रिकॉर्ड नहीं होता।
विपणन की कठिनाई: स्थानीय स्तर पर सही मूल्य न मिलने की समस्या।
प्रशासनिक समन्वय की कमी: वन विभाग और ग्रामसभा के बीच तालमेल की कमी।
बेहतर प्रबंधन के लिए सुझाव
ग्रामसभाओं को प्रशिक्षण और जागरूकता देना ताकि वे अपने अधिकारों का सही उपयोग कर सकें।
स्थानीय वन समितियों को मजबूत करना और अधिकार देना।
वन उपज के संरक्षण के लिए तकनीकी सहायता देना।
सरकार और वन विभाग को ग्रामसभाओं के साथ बेहतर तालमेल करना।
उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागू करना।
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश के अनुसूचित क्षेत्रों में लघु वन उपज का संरक्षण और प्रबंधन आदिवासी समाज की आर्थिक सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। मध्य प्रदेश पेसा नियम 2022 ने ग्रामसभाओं को वन उपज पर अधिकार देकर उनके स्वशासन को मजबूत किया है।
इससे न केवल वन संसाधनों की सुरक्षा होगी, बल्कि आदिवासी समुदाय की आजीविका और आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा। ग्रामस्तर पर जागरूकता और सक्रिय भागीदारी से यह नियम सफलतापूर्वक लागू हो सकता है।
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