अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006: एक ऐतिहासिक अधिकार की वापसी(FRA act 2006 explained )

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अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006: एक ऐतिहासिक अधिकार की वापसी FRA 2006


🇮🇳भारत की आज़ादी के दशकों बाद भी देश की मूलवासी जनजातियाँ—आदिवासी और अन्य परंपरागत वन निवासी—अपने ही जंगलों में अजनबी बनी रहीं। उनके जीवन, संस्कृति और जीविका का आधार जंगल रहा है, लेकिन कानूनी मान्यता का अभाव उन्हें लगातार बेदखली, उत्पीड़न और विस्थापन का शिकार बनाता रहा।🇮🇳


इस पृष्ठभूमि में 2006 का वन अधिकार अधिनियम (FRA 2006) एक मील का पत्थर साबित हुआ।


   FRA 2006: क्यों ज़रूरी था यह       कानून?


इतिहास का अन्याय: औपनिवेशिक काल और उसके बाद भी वन विभाग ने आदिवासियों को जंगल से बाहर कर दिया था।


कानूनी मान्यता का अभाव: सदियों से जंगल में बसे लोग "अवैध कब्जेदार" माने जाते थे।


संविधान का उद्देश्य: आदिवासियों को उनके पारंपरिक अधिकार देना संविधान का नैतिक कर्तव्य था।

     FRA अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:

1. व्यक्तिगत अधिकार: आदिवासियों को उनकी पीढ़ियों पुरानी खेती योग्य ज़मीन पर स्वामित्व अधिकार दिया जाता है (अधिकतम 4 हेक्टेयर)।


2. सामुदायिक अधिकार: ग्रामसभा को जंगल की लकड़ी, जल, औषधीय पौधे और जैव विविधता पर सामूहिक अधिकार दिए जाते हैं।

FRA2006
FRA2006

3. ग्रामसभा को अधिकार: वन संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण के लिए निर्णय ग्रामसभा द्वारा लिए जाएंगे।

वन अधिकार अधिनियम 2006(FRA)

4. खुद की पहचान: "परंपरागत वन निवासी" के रूप में मान्यता के लिए कम से कम 3 पीढ़ियों (75 साल) से जंगल में निवास आवश्यक।

     इस अधिनियम की उपलब्धियाँ:

🇮🇳लाखों आदिवासी परिवारों को ज़मीन के पट्टे मिले।🇮🇳


🌹ग्रामसभाओं ने जंगलों की कटाई पर रोक लगाई और जैव विविधता को संरक्षित किया।🌹


🙏महिलाओं को भी ज़मीन पर बराबर का हक़ मिला।🙏

     चुनौतियाँ अभी भी बाकी हैं:

कई राज्यों में अधिनियम को सही ढंग से लागू नहीं किया गया है।

🇮🇳दावों को खारिज करने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है।🇮🇳

वन विभाग और ग्रामसभा के बीच अधिकारों की खींचतान जारी है।

                             निष्कर्ष

FRA 2006 सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि न्याय, पहचान और सम्मान की वापसी है। यह भारत की आदिवासी जनता को उनके जल-जंगल-जमीन पर फिर से अधिकार देता है, और यह भी दर्शाता है कि लोकतंत्र तब ही सार्थक है जब उसमें सबसे कमजोर की आवाज़ को सुना जाए।


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