"आदिवासी स्वराज की ओर एक और बढ़ता कदम: पेसा अधिनियम 1996"

पेसा एक्ट से बदलता गाँव

 
पेसा में संवैधानिक प्रावधान: अनुसूचित क्षेत्रों के अधिकारों का विस्तार               

                           👀   भूमिका

भारत के आदिवासी समुदायों को उनके परंपरागत अधिकार और स्वशासन देने के लिए संविधान ने विशेष व्यवस्थाएँ की हैं। पेसा (PESA) यानी "Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996" आदिवासी क्षेत्रों को ग्राम स्तर पर सशक्त करने का एक ऐतिहासिक कदम है।

               1. संविधान और अनुसूचित क्षेत्र

भारत का संविधान 5वीं अनुसूची के अंतर्गत अनुसूचित क्षेत्रों में विशेष संरक्षण प्रदान करता है। ये क्षेत्र वे हैं जहाँ आदिवासी जनसंख्या बहुसंख्यक है और उनकी संस्कृति, परंपरा, शासन शैली अलग होती है।

                     5वीं अनुसूची में मुख्य बातें:

राज्यपाल को विशेष अधिकार — वह इन क्षेत्रों के लिए अलग नियम बना सकता है।

राष्ट्रपति की सहमति से क्षेत्र घोषित होते हैं।

Tribal Advisory Council (TAC) का गठन आवश्यक होता है।

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     2. 73वां संविधान संशोधन और उसकी सीमा

साल 1992 में आया 73वां संविधान संशोधन पंचायती राज को कानूनी दर्जा देता है। लेकिन यह संशोधन अनुसूचित क्षेत्रों पर सीधा लागू नहीं किया गया क्योंकि वहाँ की सामाजिक व्यवस्था अलग थी।

🇮🇳इसी वजह से ज़रूरत पड़ी एक विशेष कानून की — यही से जन्म हुआ PESA Act, 1996 का।🇮🇳

3. पेसा अधिनियम, 1996 क्या है?

पेसा अधिनियम 24 दिसंबर 1996 को लागू हुआ। इसका उद्देश्य था कि पंचायती राज की व्यवस्थाओं का अनुसूचित क्षेत्रों की परंपरागत ग्रामसभा और स्वशासन प्रणाली के अनुरूप विस्तार किया जाए।

4. पेसा अधिनियम के मुख्य प्रावधान:

1-नवीन ग्राम सभा का गठन एवं ग्राम सभा का अधिकार

प्राकृतिक संसाधनों पर निर्णय लेने का अधिकार
विकास योजनाओं की मंजूरी का अधिकार
शराब बिक्री पर रोक लगाने का अधिकार

2- भूमि, जल, जंगल पर नियंत्रण और संरक्षण का अधिकार

ग्रामसभा की अनुमति के बिना भूमि अधिग्रहण नहीं हो सकता और यदि हुआ है तो ग्राम सभा को उसे जाँच करने का पूरा अधिकार है और गलत पाए जाने पर उचित कार्यवाही ग्राम सभा कर सकेगी....

स्थानीय संसाधनों का संरक्षण ग्रामसभा के हाथ में

(3) परंपरागत व्यवस्थाओं को मान्यता:

स्थानीय रीति-रिवाज, परंपरागत कानून और समाजिक संगठन को कानूनी मान्यता

               5. पेसा का महत्व:

यह कानून आदिवासियों को "स्वराज" का संवैधानिक आधार देता है

🇮🇳पहली बार भारत में ग्रामसभा को सर्वोच्च सत्ता माना गया🇮🇳

यह कानून शासन को जनता के सबसे निचले स्तर तक पहुंचाता है और जानकारी के लिए जुड़े हमारा चैनल "संबिधान से संस्कृति तक" सबेस्क्राइब करिये शेएर करिये ताकि हम गाँव के उस अंतिम ब्यक्ति तक पहुंच सके आज भी अपने अधिकार से दूर हैं 

                पेसा अधिनियम का उद्देश्य 

1-आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा: पेसा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों के पारंपरिक अधिकारों को सशक्त करना और उन्हें स्थानीय शासन में भागीदारी का अधिकार देना है। यह अधिनियम आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि, जल, जंगल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों के बारे में निर्णय लेने का अधिकार प्रदान करता है।

2. स्थानीय स्वशासन: पेसा अधिनियम के तहत, ग्रामसभा (village assembly) को अधिकार दिया गया है कि वह अपने क्षेत्र के विकास कार्यों, संसाधनों के उपयोग और अन्य महत्वपूर्ण निर्णयों में भागीदार बने। इस तरह से, पेसा अधिनियम आदिवासी समुदायों को अपने मामलों में स्वायत्तता और अधिकार देता है।

3. कानूनी संरचना: पेसा अधिनियम के तहत, ग्रामसभाओं को ताकतवर और सक्षम बनाने के लिए एक कानूनी संरचना तैयार की गई है, जिसमें पंचायतों को स्थानीय शासन में निर्णायक भूमिका निभाने का अवसर मिलता है।

                               निष्कर्ष

पेसा अधिनियम ने आदिवासी समुदायों को उनके पारंपरिक अधिकारों और संसाधनों पर नियंत्रण का अधिकार देकर उन्हें अपने विकास और प्रशासन में भागीदारी का अवसर दिया। यह अधिनियम उन समुदायों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, जो दशकों से विकास और शासन में उपेक्षित थे। पेसा अधिनियम ने सुनिश्चित किया है कि आदिवासी क्षेत्रों में न्याय, समानता और विकास के अवसर बढ़ें।पेसा अधिनियम केवल एक कानून नहीं, बल्कि आदिवासी समाज को उनका ऐतिहासिक अधिकार दिलाने का एक मजबूत माध्यम है। जब तक इसे पूरी तरह लागू नहीं किया जाएगा, तब तक "ग्राम स्वराज" केवल एक सपना रहेगा।  

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